रुद्राक्ष

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रुद्राक्ष की उत्पत्ति

आप सभी जानते हैं कि माँ भुवनेश्वरी की असीम अनुकम्पा से ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने इस सृष्टि का निर्माण किया | इन तीनों में से भगवान शिव ने ब्रह्माण्ड के कल्याण का संकल्प लिया | स्वर्ग पर अधिकार के लिए देवताओं और दैत्यों के युद्ध के समय जब दैत्यों के राजा त्रिपुर ने देवताओं को पराजित करना शुरू किया तब देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव स्वयं असुरों के राजा त्रिपुर का वध करने के लिए दैत्यों के समक्ष आ खड़े हुए लेकिन राजा त्रिपुर बहुत ही मायावी और तामसी शक्तियों का ज्ञाता था इसलिए भगवान शिव को अनन्त वर्षों तक उससे युद्ध करना पड़ा और अंत में भगवान शिव ने उसका वध करके देवताओं को विजय दिलाई लेकिन युद्ध चूँकि काफी लंबे समय तक चला था इसलिए अत्यन्त थकान एवं युद्ध की विजय के फलस्वरूप भगवान शिव की आँखों से आंसू छलक पड़े, क्योंकि भगवान शिव ने सृष्टि का कल्याण करना है इसलिए आंसुओं की बूँदें जहाँ जहाँ गिरीं उस भूमि पर दिव्य फल के पेड़ उत्पन्न हो गए, क्योंकि रूद्र की अक्ष का आंसू था इसलिए उस फल का नाम कल्याणकारी रुद्राक्ष पड़ा | भगवान शिव के एक नेत्र में सूर्य देव का तेज और दूसरे नेत्र में चन्द्र देव की शीतलता और तीसरे नेत्र में मानव का कल्याण बसता है इसलिए शिव के नेत्रों से गिरे आसुओं से उत्पन्न कल्याणकारी रुद्राक्ष में सूर्य का तेज, चंद्रमा की शीतलता एवं मानवता का कल्याण कूट कूट कर भरा है |

रुद्राक्ष के लाभ

रुद्राक्ष में आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न करने की, प्राण ऊर्जा को सहेजने की और भौतिक बाधाओं को दूर करने की अद्वित्य क्षमता पाई गई है | इसलिए हमारे ऋषि मुनियों ने प्रारम्भिक काल से ही रुद्राक्ष के महत्व को समझा और दिव्य मन्त्रों से इसे प्राण प्रतिष्ठित करके धारण किया | इसी रुद्राक्ष के मनकों को पिरो के माला बनाकर उस पर जाप करते हुए शरीर की सभी इन्द्रियों और हजारों नाड़ियों को ऊर्जा प्रदान की जिससे ऋषि मुनियों के तन और मन निर्मल होकर आत्म बल की वृद्धि होकर पाप, रोग, दोष, संकटों व हर प्रकार की बाधाओं से मुक्त होकर वे मानवता का कल्याण करने योग्य हो सके | रुद्राक्ष को भारतीय संस्कृति की अदभुत अमूल्य एवं दिव्य धरोहर बनाने में ऋषि मुनियों का बहुत बड़ा योगदान रहा क्योंकि अनेकों अनेक अनुसन्धान जो हमारे ऋषि मुनियों ने इस पर किये वह महाशिवपुराण, सकंदपुराण, पदमपुराण, लिंगपुराण आदि अनेक ग्रंथों में वर्णनित है | महाशिवपुराण में 1 से 14 मुखी तक का विवरण है लेकिन प्रत्यक्ष में 35 मुखी तक के पेड़ इस धरती पर पाए गए हैं हालाँकि 16 मुखी से लेकर 35 मुखी तक के दाने 1 मुखी की तरह ही दुर्लभ हैं लेकिन तो भी यदा कदा मिल ही जाते हैं | अथर्ववेद में रुद्राक्ष के सम्पूर्ण प्रयोगों का विवरण मिलता है | भगवान शिव के आँख के आँसू जिन जिन स्थानों पर गिरे उनमें भारतभूमि, नेपाल, इंडोनेशिया, मलेशिया आदि प्रमुख रूप से रुद्राक्ष के बहुत बड़े उत्पादक के रूप में सामने आए | काली मिर्च से लेकर बेर तक के आकार के ब्राह्मण, क्षत्रिय, शुद्र, वैश्य चारों वर्णों के रुद्राक्ष इन देशों में पाए गए लेकिन क्षत्रिय वर्ण के रुद्राक्ष को ही सर्वाधिक मान्यता मिल पाई है |

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कौनसा दाना धारण करें एवं धारण विधि

रक्त वर्ण का रुद्राक्ष ही शत्रिय रुद्राक्ष माना गया है | मनुष्यों को अपने वर्ण का रुद्राक्ष ना मिलने पर रक्त वर्ण का रुद्राक्ष ही धारण करना चाहिए | समस्त परेशानियों का निदान करने के लिए अगर कम दाने पहनने हों तो आमले के आकार के दाने शुभफलदायक होते हैं और माला पहननी हो तो छोटा दाना सौभाग्य की वृद्धि करने वाला होता है | बेर के आकार का दाना सम्पूर्ण मनोरथों और शुभफलों को प्रदान करने वाला होता है | रुद्राक्ष की माला जितनी छोटे दाने की होगी उतनी फलदाई होगी लेकिन इसमे ध्यान रखने योग्य यह बात है कि कोई भी माला ह्रदय प्रदेश को टच ज़रूर करनी चाहिए | वैसे तो महाशिवपुराण मे कहा गया है कि पापों का नाश करने के लिए और सुख समृधि बढ़ाने के लिए किसी भी आकार का रुद्राक्ष धारण करना अति उत्तम है | सभी मालाओं में रुद्राक्ष के समान फलदाई कोई दूसरी माला नहीं है | टूटे फूटे या कीड़ों से दूषित या जो पूर्ण रूप से विकसित ना हो पाएं हों या जिनमे छेद ना हो ऐसा कोई भी रुद्राक्ष नहीं धारण करने चाहिए | जिस रुद्राक्ष में अपने आप ही डोरा पिरोने लायक छेद हो वही उत्तम माना गया है | सर्वप्रथम भगवान शिव ने इन रुद्राक्षों को स्वयं धारण करके ऋषि स्कन्द जी के माध्यम से हम सबको बताया है कि शरीर के किस भाग मे कितने रुद्राक्ष धारण करने चाहिए |

भगवान शिव ने सर्वप्रथम 550 दानों को अपनी जटाओं व मस्तक पर धारण किया |
108 दानों को लंबे सूत्र मे पिरोकर उसकी माला बनाकर इसको गले में धारण किया |
6-6 दानों की माला कान में, 12-12 दानों की माला हाथ में, 15-15 दानों की माला भुजा में व 32 दानों की माला कंठ में |
इस प्रकार भगवान शिव ने 6 मुखी रुद्राक्ष दाएं हाथ में, 7 मुखी कंठ में, 8 मुखी और 12 मुखी को मस्तक पर, 9 मुखी को बाएँ हाथ में, 14 मुखी रुद्राक्ष को शिखा में धारण करके आरोग्यलाभ, धार्मिक प्रवर्ती का उदय करने, शक्ति प्राप्त करने और विघ्नों के नाश करने के रस्ते बताएँ हैं |

यथा योग्य सिद्ध रुद्राक्ष धारण करने वाले मनुष्य भगवान शिव को अत्यन्त प्रिय होते हैं और शरीर में रक्त का संचारण सही रूप से होकर ब्लड प्रेशर आदि कई प्रकार के रोगों में लाभ प्रदान करते हैं | जिगर की गर्मी बाहर निकालकर ह्रदय को बल प्रदान करते हैं | महाशिवपुराण के अनुसार अगर प्राण प्रतिष्ठा व अभिषेक करके अभिमंत्रित रुद्राक्ष धारण किये जाएँ तो ब्रह्म हत्या जैसे पापों से भी मुक्ति मिलकर अंत में मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है | महाशिवपुराण के अनुसार 1 से 14 मुखी तक रुद्राक्ष सभी प्रमुख देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं | इसीलिए ब्रह्माण्ड की सभी शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए 1 से 14 मुखी रुद्राक्ष तक का कंठा धारण करना सर्वोत्तम होता है | रुद्राक्ष धारण से समस्त पापों से मुक्त होकर मनुष्य मृतन्जय पद को प्राप्त करता है | तन और मन सात्विकता से भर जाता है और भगवान शिव के आशीर्वाद से भगवान शिव की तरह मानव अपने व मनुष्यों के कल्याण में लग जाता है | यही रुद्राक्ष का सर्वाधिक उत्तम गुण है इसलिए हम इस धरती के समस्त मनुष्यों से आग्रह करते हैं कि वो किसी भी प्रकार से रुद्राक्ष धारण अवश्य करें | आप सबकी जानकारी हेतू अब हम 1 से लेकर 14 मुखी रुद्राक्ष तक के बारे में विस्तार से बताएँगे |

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